अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बजाए, सरकार ने इसी अनुच्छेद द्वारा राष्ट्रपति को दी गई शक्ति का उपयोग करके इसे निष्क्रिय कर दिया.
हालांकि धारा 370 को खत्म करने के लिए अनुच्छेद 368 के तहत एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होती है. लेकिन अनुच्छेद 370(3) का इस्तेमाल कर सरकार ने बड़ी चतुराई से संशोधन मार्ग को दरकिनार कर दिया.
राष्ट्रपति के इस आदेश पर राज्यसभा में भारी हंगामा हुआ. गुलाम नबी आज़ाद सहित विपक्षी नेताओं ने इस कदम का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि सरकार ने संविधान की ‘हत्या’ की है.
अपने इस कदम का पक्ष लेते हुए अमित शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने वही किया है जो 1952 और 1962 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था. पंडित नेहरू और तत्कालीन जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने 1952 में दिल्ली समझौते पर सहमति व्यक्त की थी जो कश्मीर के लोगों को वंश के सिद्धांतों पर संपत्ति के स्वामित्व पर विशेषाधिकार प्रदान करता था. 1962 में भी एक राष्ट्रपति आदेश लागू किया गया था
रणबीर दंड संहिता (RPC) की जगह भारतीय दंड संहिता (IPC) लागू होगी.